सच कहना ऐ जानेमन क्या याद तुम्हें तब आती थी।
जब सुबह की लाली आती थी,
नई सुबह इक लाती थी,
और मीठी खुश्बू फूलों की,
सारी बगिया महकाती थी,
सच कहना ऐ जानेमन क्या याद तुम्हें तब आती थी।
जब शाम का सूरज ढलता था,
और अंदर अंदर जलता था,
सब आस पास होने पर भी,
न तन्हा दिल बहलता था,
सच कहना ऐ जानेमन क्या याद तुम्हें तब आती थी।
जब रात आँख में रहती थी,
जब नदी नींद की बहती थी,
जब मेरे आंखें बंद करने पर ,
तुम कान में आ कुछ कहती थी,
सच कहना ऐ जानेमन क्या याद तुम्हें तब आती थी।
जब सुबह की लाली आती थी,
नई सुबह इक लाती थी,
और मीठी खुश्बू फूलों की,
सारी बगिया महकाती थी,
सच कहना ऐ जानेमन क्या याद तुम्हें तब आती थी।
जब शाम का सूरज ढलता था,
और अंदर अंदर जलता था,
सब आस पास होने पर भी,
न तन्हा दिल बहलता था,
सच कहना ऐ जानेमन क्या याद तुम्हें तब आती थी।
जब रात आँख में रहती थी,
जब नदी नींद की बहती थी,
जब मेरे आंखें बंद करने पर ,
तुम कान में आ कुछ कहती थी,
सच कहना ऐ जानेमन क्या याद तुम्हें तब आती थी।
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